- वीरेन्द्र ‘सरल‘
गंवई-गाँव म बियारा ह ओ ठउर आय जिहां किसान चार महीना ले अपन जांगर तोड के कमाय के पाछू उपजे फसल ला परघा के लानथे अउ जिनगी के सपना ला सिरजाथे। इही फसल के भरोसा म कोन्हों अपन नोनी के बिहाव के सपना देखथे तब कोन्हों अपन बेटा बर दुकान खोले के। कोन्हों करजा के मषान ले मुक्त पाय के बात सोंचथे तब कोनहों अपन सुवारी के सिंगार करे बर गहना-गुरिया बिसाय के। बियारा म सकलाय फसल के भरोसा म मइनखे अपन जिनगी के किसम-किसम के ताना-बाना बुनथे फेर सियान मन कहे हे न कि हरियर खेती, गाभिन गाय जभे बियाय तभे पतियाय। जब फसल ह बने-बने होथे तब किसान के सपना ह सउंहत हो जाथय नहीं ते सपना ह सपना च बनके रही जाथय। मइनखे के जिनगी ह घला बियारा बरोबर तो आय इहां मनखे के करम के खेती के फसल सकलाय हे अउ मन ह किसान सरीख अपन सपना ला सउंहत बनाय बर करम के फसल ला आषा अउ विष्वास ले निहारत रहिथे। जिनगी के बियारा म काय-काय सकलाय हे येला जाने बर तो सुधा षर्मा जी के कविता संग्रह ‘जिनगी के बियारा म पढ़े ला लागही। कविता ह कवि के मन के उदगार भर नोहे भलुक सब के हित के गोहार आय। कवि के हिरदे म कविता ह बिना संवेदना के नइ उपजय। कवि-कवयित्री मन ह जब देखथे कि आज के मनखे घर परिवार,देष अउ समाज के जउन डारा म बइठे हे उही ला काटत हे, अपन संस्कृति अउ सभ्यता ला भुलावत हे, अपन स्वारथ खातिर दूसर ला नुकसान पहुँचावत हे तब ओखर अन्तस के पीरा ह कागद म उतर जाथय अउ कविता के धार ह सरलग बोहाय लागथे।
सुधा षर्मा जी ह अपन जिनगी के अनुभव ला जिनगी के बियारा कविता संग्रह म माला के मोती अस पिरोय हावे। जेमा मयारू गाँव के बरनन हे , राजिम कुंभ के महŸाम हे, चिरई-चिरगुन के गुरतुर बोली हे, परकिती के चित्रण हे, माटी महतारी के पीरा हे, वृक्षारोपण के संदेष हे, बिगड़त पर्यावरण के संषो हे, उद्योगीकरण के भेंट चढ़त खेती अउ किसान ले बनिहार लहुटत गवंई-गांव के जवनहा मन के फिकर हे। तब दूसर कोती ननपन के उछाह, मया-पिरीत के गोठ, बेटी के महिमा, घुरवा के दिन बहुरे के आषा अउ विष्वास घला हे। कई ठन कविता म परकिती के मानवीयकरण करके ओखर सुघ्घरई के बरनन करे के जोखा घला मढ़ाय हे कवयित्री ह।
संग्रह के कविता मन म हमर गुरतुर भाखा के कई ठन नदांवत षबद मन के गजब सुघ्घर परयोग होय हावे। समाज ला सुघ्घर कविता संग्रह दे बर मय सुधा षर्मा जी ला गाड़ा-गाड़ा बधाई देवत भरोसा करत हव कि अवइया बेरा म घला उनखर नवा-नवा कविता पढ़के पढ़इया मन ला अपन जिनगी के रद्दा ला चतवारे के मउका मिलत रही।
संग्रह-जिनगी के बियारा म, लेखिका-श्रीमती सुधा षर्मा, समीक्षक -वीरेन्द्र‘सरल‘ वैभव प्रकाषन रायपुर, मूल्य-100रूपया मात्र
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